”आप लोग सिर्फ पांच महीने महीने और सांस रोके रखिए। तब देखिए मेरे नेता व प्रिय सीएम का खेला। देश की तमाम विपक्षी पार्टियां प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बढ़ती लोकप्रियता से त्रस्त हैं। अब धीरे-धीरे क्रिस्टल क्लियर हो रहा है कि मोदी के रथ को एक ही वीर रोक सकता है और वो शख्स हैं माननीय नीतीश कुमार। कांग्रेस सहित विरोधी दलों के सारे नेता अगर सर्वसम्मति से पीएम फेस के रूप में अगले चुनाव के लिए नीतीश कुमार को स्वीकार करते हैं तो ठीक है, नहीं तो हमलोग कोई दूसरा रास्ता खोजने का काम शुरू करेंगे। लालू प्रसाद यादव के साथ रहकर सुशासन की बात करना बेमानी है। राजद सुप्रीमो और उनके कुनबों ने सबके नाक में दम कर दिया है।” यह कथन है नीतीश कुमार के एक करीब सांसद का।
वैसे कुछ करीबी मीडियाकर्मियों को भी नीतीश कुमार इशारों में बता चुके हैं गर्मियों के बाद कुछ घरों में सिआसी अकाल पड़ने वाला है। 22 मार्च को बिहार दिवस समारोह के आमंत्रण पत्र पर उप मुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद यादव का नाम नहीं होना किसी भी एंगल से मानवीय भूल नहीं हो सकता है। राजनीतिक गलियारे में आमंत्रण पत्र की घटना को लालू प्रसाद यादव के घर में आने वाली सिआसी अकाल की आहट के रूप में देखा जा रहा है। करीब एक सप्ताह पहले लगभग दो दर्जन अधिकारियों, जिसमें छपरा के जिलाधिकारी भी शामिल हैं, का तबादला हुआ था। पुष्ट खबर है कि इस तबादले में लालू प्रसाद यादव की एक न चली। उनके पैरवी को बेदर्दी से नजरअंदाज किया गया।
‘‘साहब ने बताया कि लालू जी केवल यादव व मुस्लिम अफसरों का ही नाम भेजते हैं। आप लोग उनके द्वारा भेजे नामों को कट कीजिए लेकिन सहूलियत के लिए उसी जाति, वर्ग और सम्प्रदाय से आनेवाले मेरे अधिकारियों को उनके द्वारा सुझाए जगहों पर पार्सल कीजिए। और ऐसा ही किया गया।” एसडीओ रैंक के एक अधिकारी ने आगे बताया कि ‘‘अधिकारियों के ट्रान्सफर पोस्टिंग की जिम्मेवारी फिर से पुराने वाले अफसर-कम-नेता, जो जूनियर सीएम के रूप में जाने व पूजे जाते हैं, के हाथ में दे दिया गया है।” यूपी विधानसभा चुनाव के नतीजे ने नीतीश कुमार को भीतर से काफी मजबूत किया है। जो वो चाहते थे वही हुआ।