हैदराबाद: मन में अगर कुछ कर गुजरने और कभी न हार मानने का जज्बा हो तो कुछ भी नामुमकिन नहीं है। इसकी मिसाल हैं 30 साल के गोपाल कृष्ण रोनांकी। काफी गरीब परिवार से आने वाले गोपाल की जिद और उनके हौसलों के आगे चुनौतियों के पहाड़ भी बौने हो गए। उन्होंने न सिर्फ सिविल सर्विस एग्जाम में सफलता हासिल की बल्कि पूरे भारत में तीसरा रैंक हासिल किया। तेलुगूभाषी दो राज्यों आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में वह टॉप रैंक पर हैं।
गोपाल कृष्ण रोनांकी के पिता रोनांकी अप्पा राव आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम जिले के पारासांबा गांव के एक गरीब किसान हैं। उनकी पत्नी अनपढ़ हैं। दोनों अपने बेटे की शुरुआती शिक्षा अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में दिलाना चाहते थे, लेकिन उनकी माली हालत ने इसकी इजाजत नहीं दी। गोपाल कृष्ण रोनांकी ने स्थानीय सरकारी स्कूल से पढ़ाई की। परिवार की गरीबी का आलम यह है कि गोपाल को दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से ग्रैजुएशन करना पड़ा। इतना ही नहीं, परिवार को आर्थिक सहारा देने के लिए उन्होंने श्रीकाकुलम में एक स्कूल में पढ़ाना शुरू किया। हालांकि सिविल की तैयारी के लिए पर्याप्त समय नहीं मिल पाने की वजह से उन्होंने नौकरी छोड़ दी और हैदराबाद आ गए।
हैदराबाद में गोपाल ने सिविल की तैयारी के लिए कोचिंग सेंटर जॉइन करना चाहा लेकिन पिछड़े इलाके से आने की वजह से किसी भी कोचिंग सेंटर ने उन्हें दाखिला नहीं दिया। गोपाल के पास सेल्फ-स्टडी के अलावा कोई चारा नहीं बचा। कोचिंग से महरूम होने को उन्होंने कमजोरी के बजाय अपनी ताकत बनाई। एग्जाम के लिए उन्होंने कोई क्लासरूम या कोचिंग अटेंड नहीं किया। आखिरकार अपनी कड़ी मेहनत और लगन की बदौलत गोपाल ने सिविल सर्विस एग्जाम में कामयाबी का परचम लहराया। उन्होंने मुख्य परीक्षा में तुलुगू साहित्य को वैकल्पिक विषय रखा था।