नई दिल्ली। दिल्ली हाई कोर्ट ने मंगलवार(4 अक्टूबर) को कहा है कि शहर में रेहड़ी-पटरी वालों का सर्वेक्षण करने के लिए योजना बनाने में हो रही देरी से पथ विक्रेता अधिनियम का जो उद्देश्य था वह पूरा नहीं हो पा रहा है। इस सर्वे का उद्देश्य रेहड़ी वालों को प्रमाण पत्र जारी कर उन्हें सड़क किनारे अपना सामान बेचने की अनुमति देना था।
मुख्य न्यायाधीश जी रोहिणी और न्यायमूर्ति संगीता ढींगरा सहगल की पीठ ने कहा है कि यह योजना साल 2014 में पथ विक्रेता जीविका सुरक्षा तथा नियमन अधिनियम के प्रभावी होने के छह महीने के भीतर तैयार हो जानी चाहिए थी, लेकिन इसमें हो रही देरी ने ‘‘कानून के उद्देश्य को पराजित’’ कर दिया है।
अदालत की ओर से यह टिप्पणी कांग्रेसी नेता अजय माकन की उस जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान की गई जिसमें उन्होंने प्रशासन को निर्देश देने की मांग की है कि जब तक कानून लागू नहीं हो जाता और जब तक वर्तमान रेहड़ी वालों के सर्वे के लिए योजना तैयार नहीं हो जाती और उन्हें पथ विक्रेता प्रमाण पत्र (सीवीओ) जारी नहीं हो जाता तब तक रेहड़ी और पटरी वालों को हटाया नहीं जाए।
पीठ ने दिल्ली सरकार से कहा कि जिस तरीके से वह योजना तैयार कर रही है वह ‘‘कानून के नियमों के मुताबिक नहीं है।’’ नई दिल्ली नगर परिषद (एनडीएमसी) ने अदालत को बताया था कि उसने अपने क्षेत्र के रेहड़ी पटरीवालों का 90 फीसदी सर्वेक्षण पूरा कर लिया है और इसे पूरा करने की अनुमति मांगी थी। अदालत ने कहा है कि इस मुद्दे पर वह बुधवार(5 अक्टूबर) को आदेश जारी करेगी।