आरपीएफ के एक वरिष्ठ अफसर ने पहचान जाहिर न किए जाने की शर्त पर बताया कि मिश्रा जिन बच्चों को बचाती हैं उन्हें कोई नुकसान न पहुंचे यह सुनिश्चित करने के लिए किसी भी हद तक जा सकती हैं। अधिकारी ने कहा, ‘दरअसल यह एक थैंकलेस जॉब है। आप जिनके साथ डील कर रहे होते हैं वे कोई अपराधी नहीं होते। अक्सर वे पीड़ित होते हैं और आप उन्हें स्टेशन पर छोड़कर शाम को अपने घर नहीं जा सकते। आपको उनके लिए वहां रहना पड़ेगा। वह यही करती हैं।’
मिश्रा बताती हैं कि पिछले साल उन्होंने 400 से ज्यादा बच्चों को बचाया। वह खास तौर पर चेन्नै की 3 लड़कियों को याद करती हैं जिन्हें उन्होंने उनके मां-बाप से मिलाया था। वह कहती हैं, ‘तीनों लड़कियों की उम्र 14 साल के करीब थी। पहली लड़की ने मुझे बताया कि वह अपहर्ता के चंगुल से भागकर आई है। चूंकि भाषा एक बाधा थी तो हमें अनुवादक की मदद लेनी पड़ी थी। लेकिन आखिरकार उन्होंने सच्चाई बताया कि दरअसल फिल्मों में काम करने के लिए वे घर से भागी हुई थीं।’
मिश्रा कहती हैं कि उन्होंने अपने परिवार से कभी भी अपनी उपलब्धियों का बखान नहीं किया लेकिन सेंट्रल रेलवे ने हाल ही में उनके काम के बारे में ट्वीट किया था। बच्चों को बचाने का सिलसिला जारी है और रेखा मिश्रा 2017 के शुरुआती तीन महीनों में ही 100 से ज्यादा बच्चों को बचा चुकी हैं।