शशिकला: नहीं लड़ा कोई भी चुनाव, अब संभालेगी सीएम की गद्दी

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द्रविड़ पार्टियां एआईडीएमके या डीएमके कम्युनिस्ट पार्टियों के तर्ज पर बनाई गई थी।

इस ढर्रे के तहत पार्टी प्रमुख सरकार के मुखिया से ज्यादा महत्व रखता है और पार्टी कैडरों का सरकार में काफी प्रभाव होता है।

लेकिन एआईडीएमके के मामले में यह बात थोड़ी अजीब है कि शशिकला के पार्टी प्रमुख बनने या फिर अब मुख्यमंत्री बनने का रास्ता साफ होने के बाद पार्टी कैडर उतना खुश नहीं हैं।

डेक्कन क्रॉनिकल के रेजिडेंट एडिटर भगवान सिंह ने कहा, “यह मत समझें कि कैडर शशिकला के साथ हैं। हालांकि विधायकों का उनके पास समर्थन है। ऐसा इसलिए है क्योंकि टिकट बांटने में सालों से उनकी भूमिका अहम रही है।”

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सच तो यह है कि जब पिछले साल सितंबर से जयललिता अपोलो हॉस्पिटल में भर्ती थीं तब से पार्टी कैडर उनकी भतीजी दीपा जयकुमार के घर के बाहर उन्हें राजनीति में शामिल होने की मांग कर रहे थे।

भगवान सिंह कहते हैं, “आज भी इस तरह की मांग हो रही है. दीपा के फ़ैन क्लब चेन्नई में उनके पोस्टर निकाल रहे हैं।”

लेकिन भगवान सिंह पिछले कुछ दिनों से एक दूसरी ही कहानी की ओर इशारा कर रहे हैं। यह शशिकला के पति एम नटराजन से जुड़ी हुई है।

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भगवान सिंह बताते हैं, “केंद्र की बीजेपी सरकार एआईडीएमके की सरकार को अस्थिर करने की कोशिश में लगी हुई है।”

नटराजन ही वो शख़्स थे जिन्होंने शशिकला की मुलाक़ात जयललिता से करवाई थी। उस वक्त वो पार्टी की प्रचार शाखा की सचिव थीं और एमजी रामचंद्रन राज्य के मुख्यमंत्री थे।

उन्होंने ही जयललिता का संपर्क दिल्ली के नेताओं से करवाया था. यह वो समय था जब रामचंद्रन की मौत के बाद जयललिता पार्टी में अपनी जगह बनाने के लिए जूझ रही थीं।

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जयललिता और एम नटराजन के रिश्तों में बाद के दिनों में दरार भी आई थी। लेकिन जयललिता की मृत्यु के बाद वे शशिकला और उनके परिवार वालों के साथ उनके मृत शरीर के पास ही दिखे।

नटराजन इस बात का दावा करते हैं और दूसरे कई लोग इस बात पर यकीन भी करते हैं कि 1991 में जयललिता को पहली बार मुख्यमंत्री बनाने में उनकी सबसे अहम भूमिका थी।

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