नोटबंदी का साइड इफेक्ट: कालाधन हो गया सफेद, बैंकों के पास कैश नहीं, ट्रेड और निवेश गिरा। पढ़िए पूरी रिपोर्ट

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इस बारे में अरुण कुमार कहते हैं, “नक़दी की समस्या पांच छह महीने तक चलेगी। इससे पहले इतने बड़े पैमाने पर नोटों को छापना संभव नहीं होगा। वैसे, देश की अर्थव्यवस्था पर इसका असर एक-दो साल तक दिखेगा।”

वेंकटचलम के मुताबिक़ इससे आम लोगों के साथ साथ बैंक कर्मचारियों को भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।

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वे कहते हैं, “आम लोगों को उनका ही पैसा बैंकों में नहीं मिल रहा है। 24 हजार की लिमिट जितना पैसा भी देने में मुश्किलें हो रही हैं। बैंक कर्मचारियों का वर्क लोड कई गुना बढ़ा हुआ है।”

वेंकटचलम के मुताबिक जल्दी ही उनका संगठन देशव्यापी हड़ताल करने की योजना बना रहा है।

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नोटबंदी का असर लंबे समय तक क्यों रहेगा, इसे स्पष्ट करते हुए अरुण कुमार कहते हैं, “जिस तरह की ख़बरें आ रही हैं, उसके मुताबिक़ निवेश गिरा है। 20 से 30 फ़ीसदी ट्रेड गिर गया है। ऐसी सूरत में बीते दो महीने के दौरान ग्रोथ निगेटिव में चली गई होगी, उससे उबरने में वक्त तो लगेगा।”

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बीते 8 नवंबर, 2016 को प्रधानमंत्री ने आधी रात 500 और 1000 रुपये के नोटों का चलन बंद कर दिया था। उसकी जगह रिजर्व बैंक ने 2000 और 500 रुपये के नए नोट जारी किए हैं, लेकिन जितनी मांग है, उतनी आपूर्ति नहीं हो पा रही है।

 

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