रेलवे की इस हरकत से गुस्साई अदालत ने स्वर्ण शताब्दी एक्सप्रेस को कर दिया किसान के नाम, पढ़ें पूरी खबर

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अदालत

पंजाब में एक चौंकाने वाला और बेहद अविश्वस्यनीय मामला सामने आया है जहां एक अदालत द्वारा स्वर्ण शताब्दी ट्रेन एक किसान को दे दी गई। जमीन अधिग्रहण के बाद किसान को मुआवजा देने के अदालती आदेश की जब रेलवे ने अवहेलना कर दी, तो अदालत ने देश के प्रसिद्ध रेलगाड़ियों में शुमार स्वर्ण शताब्दी एक्सप्रेस को ही किसान के नाम कर दिया। यह रेलगाड़ी अमृतसर से नयी दिल्ली के बीच परिचालित की जाती है। दिलचस्प बात यह है कि अदालत ने किसान को इस पूरी ट्रेन को ही घर ले जाने का आदेश दिया है। दरअसल, लुधियाना के जिला एवं सत्र न्यायाधीश जसपाल वर्मा ने ट्रेन संख्या 12030 को किसान के नाम कर दिया।

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मीडिया में आ रही खबरों के अनुसार, कोर्ट को ये फैसला सुनाने के लिए तब मजबूर होना पड़ा, जब रेलवे ने पीड़ित किसान को एक करोड़ पांच लाख रुपये का बढ़ा हुआ मुआवजा देने के अदालती आदेश की अवहेलना की। अदालत ने अपने आदेश में स्टेशन मास्टर के कार्यालय को भी जब्त करने के आदेश दिये हैं। अदालत के आदेश के बाद अब यह ट्रेन लुधियाना जिले के कटाना गांव निवासी किसान समपूरण सिंह की हो गयी, लेकिन फिलहाल किसान इस ट्रेन को अपने घर ले जाने में असमर्थ है।

हालांकि, ट्रेन पर अपना कब्जा लेने के लिए जब किसान संपूरण सिंह अपने वकील के साथ स्टेशन पर पहुंचे और उन्होंने कोर्ट के आदेश को रेल ड्राइवर को भी सौंपा, तो रेलवे के सेक्शन इंजीनियर प्रदीप कुमार ने सुपरदारी के आधार पर ट्रेन को किसान के कब्जे में जाने से इनकार कर दिया। फिलहाल, यह ट्रेन कोर्ट की संपत्ति है।

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ये है पूरा मामला

दरअसल 2007 में लुधियाना चंडीगढ़ रेल मार्ग के लिए रेलवे द्वारा ज़मीन अधिग्रहण की जा रही थी तब लुधियाना जिले में पड़ते गांव कटानी कला के रहने वाले सम्पूर्ण सिंह नाम के व्यक्ति ने अपनी ज़मीन के मुआवज़े संबंधी केस अदालत में दायर किया था, जिसका फैसला 29 जनवरी 2015 में अदालत ने किसान के हक़ में दिया और अदालत ने फैसले में रेलवे को यह आदेश दिया कि वह पीड़ित किसान को 75 लाख रुपये की राशि का भुगतान करें। मगर काफी समय बीत जाने के बाद भी रेलवे ने इस राशि का भुगतान नहीं किया। इस केस में अदालत ने रेलवे विभाग को 75 लाख रुपये अदा करने का जो आदेश दिया था उसकी राशि अब बढ़कर 1 करोड़ रुपये से भी ज्यादा हो गई है और इसी रकम की न अदायगी के चलते अदालत ने यह आदेश दिया था, जिसका अंतिम फैसला अब 18 मार्च को होगा।

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