जो जनता नोट बदलने और जमा करने के लिए बैंक और एटीएम के आगे लाइन में खड़ी है, वही जनता अगले विधानसभा चुनाव में इससे ज्यादा लंबी-लंबी लाइनें लगाकर भाजपा के खिलाफ वोट डालकर उसका सफाया करेगी। सपा राज्यसभा सदस्य ने कहा कि वे नोटबंदी के खिलाफ नहीं हैं लेकिन उसके प्रभावों से निपटने के लिए अपनाए गए तरीकों में नीतिनिर्धारकों की अनुभवहीनता खुलकर सामने आ गई है। इससे जनता को परेशानी हो रही है और सपा इसी के खिलाफ है।
नंदा ने तर्क दिया कि देश के हर पांच में से चार गांव बैंकिग सेवा से वंचित हैं। उन गांवों में रहने वाले गरीब लोग कर्ज के लिए महाजनों और अन्य धनवान लोगों पर निर्भर हैं। नोटबंदी से गांवों के घरों के चूल्हे ठंडे पड़े हैं। मजदूरों को रोजगार नहीं मिल रहा है। नकदी का प्रवाह थम जाने की वजह से हजारों लोगों की नौकरी छूट गई है। सरकार ने प्रचलन में रहे 86 फीसद नोटों को हटाने से पहले उनके बारे में नहीं सोचा।उन्होंने कहा कि भाजपा को इस बात का अंदाजा ही नहीं हो पा रहा है कि उसके कदम की मार आम जनता पर कहां-कहां तक पड़ रही है।