आपको बता दें कि साल 2010-11 में मायावती राज में 21 चीनी मिलों को उनकी वास्तविक कीमत से काफी कम कीमत पर बेचा गया था। घोटाले की जांच पिछली अखिलेश यादव सरकार ने नवंबर 2012 में लोक आयुक्त को सौंपी थी। तत्कालीन लोकायुक्त न्यायमूर्ति एनके मेहरोत्रा ने डेढ़ साल से ज्यादा समय तक जांच भी की, लेकिन नतीजा सिफर रहा।
जुलाई 2014 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को भेजी गई अपनी जांच रिपोर्ट में लोकायुक्त ने चीनी मिलों की बिक्री में सरकार को लगी 1180 करोड़ रुपये की चपत के लिए किसी को जिम्मेदार नहीं ठहराया था।
लोकायुक्त ने सरकार को इस मामले में विधानमंडल की सार्वजनिक उपक्रम एवं निगम संयुक्त समिति व सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन एसएलपी पर अपना पक्ष प्रस्तुत करने की सिफारिश की थी। इसके बाद मामला ठंडे बस्ते में चला गया।
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