लखनऊ का बंगला नंबर 6 कालिदास मार्ग एक बार फिर चर्चा में है। वजह ये है कि प्रदेश में नई सरकार का गठन हुआ है और ऐसे में नए मंत्रियों को सरकारी आवास आवंटित करने का भी दौर शुरू हो चुका है। कुछ आवास और कार्यालय ऐसे हैं जिनके साथ अंधविश्वास जुड़ा हुआ है। इसकी चर्चा सियासी गलियारों में भी गूंज रही है।
इसमें मुख्यमंत्री आवास के बगल वाला सरकारी बंगला नंबर 6 कालिदास मार्ग, गौतम पल्ली स्थित 22 नंबर का आवास और विधान भवन स्थित कार्यालय का कक्ष संख्या 58 ऐसा है जिसे लेने में लोग झिझकते हैं। हालांकि, अधिकारी इसे महज इत्तेफाक मानते हैं। उनका कहना है कि गलत काम करने के कारण अगर कोई सजा पाता है तो इसमें बंगले का क्या दोष?
इस बंगले को कुछ लोग ‘भूत बंगला’ भी कहते हैं। माना जाता है कि इस बंगले में जो भी अफसर आया उसके साथ कुछ बुरा जरूर होता है। पढ़ें क्या है पूरा माजरा साथ ही आपको बताते हैं कि यहां जो भी अधिकारी रहने आया, उसके साथ कुछ न कुछ बुरा होता रहता है।
नीरा यादव :
मुलायम सरकार में मुख्य सचिव रह चुकीं नीरा यादव यहां रहती थीं। इसी बंगले में रहते उन पर मुसीबतें आनी शुरु हुईं। नोएडा में प्लॉट आवंटन मामले में नीरा का नाम आया। यही नहीं इस केस में उन्हें जेल भी जाना पड़ा।
प्रदीप शुक्ला :
प्रमुख सचिव परिवार कल्याण रहे प्रदीप शुक्ला भी इस मकान में रह चुके हैं। वह एनआरएचएम घोटाले में फंस गए। बाद में इस बंगले को मंत्रियों या अहम पदों पर बैठे नेताओं के लिए आवंटित किया जाने लगा।
अमर सिंह :
साल 2003 में आई सपा सरकार में अमर सिंह को यह बंगला आवंटित किया गया। इसके बाद मुलायम सरकार तो गई ही, साथ ही अमर सिंह को सपा से निकाल दिया गया। और वह कई विवादों में भी रहे।
बाबूसिंह कुशवाहा :
बसपा के बाबूसिंह कुशवाहा को भी इसी बंगले में रहना पड़ा था। शुरुआत में बाबूसिंह को कोई परेशानी नहीं हुई। लेकिन सरकार के आखिरी समय में वह एनआरएचएम घोटाले में फंस गए और जेल भी गए।
वकार अहमद शाह :
बसपा के बाद फिर सपा सरकार आई और यह बंगला कैबिनेट मंत्री वकार अहमद शाह को दिया गया। अहमद शाह करीब 6 महीने तक इसमें रहे और उसके बाद बीमार पड़ गए। अभी तक वह कोमा में हैं।
राजेंद्र चौधरी :
अखिलेश यादव की सरकार में यह बंगला राजेंद्र चौधरी को आवंटित किया गया। इस आवास में शिफ्ट हुए उन्हें एक दिन नहीं बीता था, उनसे एक अहम मंत्रालय छीन लिया गया।
जावेद आब्दी :
चौधरी के बाद जावेद आब्दी को यह बंगला दिया गया। आब्दी जब इस बंगले में आए, उस वक्त वह उप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के चेयरमैन थे। कुछ दिन बाद उन्हें पद से हटा दिया गया।
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